Rajani katare

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बंधन जन्मों का भाग -- 18




                  "बंधन जन्मों का" भाग-18

पिछला भाग:--

दो दिन हो गये तीन दिन हो गये समझ नहीं 
आ रहा... कुछ खबर तो भिजवाना चाहिए...
आज मैं घर ही चली जाऊंगी... जाकर देखूं 
तो क्या बात है......
अब आगे:--
शाम को जैसे ही छुट्टी होती है...विमला 
रिक्शा करके सीधे शीला के घर पहुँचती 
है...जाकर देखती है उसकी सासू माँ रसोई 
में थीं....शीला अपने रुम में पड़ी थी उसका 
सारा शरीर तप रहा था... कैसी सहेली है...
एक फोन तो कर सकती थी... फोन खराब 
हो गया.....ओर कोई ऐसा है नहीं यहाँ... 
जिससे कह सकें...या खबर ही भिजवा सकें...
चल डाक्टर को दिखा कर आते हैं... बहुत 
तेज बुखार चढ़ा है तुझको तो.....
आज ही एकदम तेज हो गया.... मैं सोची कल 
तक तो ठीक ही हो जायेगा.....
एक काम करना मेरा या तो मोबाइल ठीक करा
दे या फिर नया ले आना..... बिना मोबाइल के
बहुत परेशानी हो जाती है....

अच्छा चल मैं रिक्शा बुलाती हूँ...चल डाक्टर
को दिखा कर आते हैं.....
डाक्टर-चिंता की कोई बात नहीं है... मौसम 
के बदलाव का असर है.....
ये तीन दिन की दवाई है... बिल्कुल आराम 
लग जायेगा.......
चल अब में जा रही हूँ... कुछ जरुरत हो तो 
बताना एप्लिकेशन दे दो मैं जमा कर दूंगी.....
अरे तुम साईन भर कर दो... मैं एप्लिकेशन 
लिख लूंगी......

दो दिन बाद शीला स्वस्थ होकर स्कूल आने 
लगतीहै... हालांकि अभी कमजोरी बहुत है....
विमला-देख अभी ध्यान रख अपना... बहुत कमजोरी है तू आधे दिन की छुट्टी लेकर चली
जाना थोड़ा आराम मिल जायेगा....

अब समय ज्यादा बचा नहीं है.... शादी की 
तैयारियां भी करनी है... बच्चू कल रविवार 
है सो बाजार चलेंगे सबसे पहले कपड़ों की खरीदारी कर लेते हैं क्योंकि उन्हें सिलवाना
पड़ेगा, साड़ियों में फाल पिको कराना, कुछ 
ठीक भी करवाना पड़ेगा...लेने देने वाले कपड़े 
भी तो खरीदना पड़ेगा... हाँ बच्चू एक बात है ज्यादा लोगों को नहीं बुलाएंगे... खास खास
लोगों को ही बुलाएंगे जिससे अपन अच्छा से अच्छा दे सकें... अच्छे से मान सम्मान कर 
सकें.......

एक हफ्ते से लगे लगे करीब सब तैयारियां 
पूरी कर लीं विमला ने......
पाँच दिन खूब अच्छे से दीपावली का त्यौहार मनाया...खूब रंगीन बल्वों से सजी झालरें....
हर जगह दियों की पंक्तियां....सुंदर से वंदनवारे,
आँगन में बहुत बढ़िया रांगोली सजी.....
बड़े मन से विमला ने घर में ही मिठाई और
नमकीन बना लिया... बहुत समय बाद उसके जीवन में खुशियों ने दस्तक जो दी थी.....

घर की साफ-सफाई... बनाना करना करते 
काफी समय निकल गया... रांगोली डालने 
में भी बहुत समय निकल गया....पूजा-अर्चना 
करते रात काफी हो गयी 10 बज गए... 
विमला ने सोचा था खुद ही जायेगी मिठाई देने शीला के घर...पर अब तो बहुत देर हो चुकी 
रिक्शा भी नहीं मिलेगा... अब कल ही जाकर 
दे आऊंगी....

करीब साढ़े दस बजे होंगे शीला और उसका 
बेटा मिठाई लेकर आ गये......
अरे देख मैं तो सोचती ही रह गयी... कैसे जाऊं
रिक्शा मिलता नहीं इतनी रात को.....
देख न आर्यन आ गया तभी तो हम आ पाए....
गाड़ी कौन चलाता... ये तो अचानक आ गया
और कल चला भी जायेगा.....

अब तो तुम्हारी बिटिया हमारी हो गयी सो ये 
मिठाई...सबका मुँह मीठा करवाओ.....
ये बच्चों के लिए कपड़े और फटाके.....
चल अब जाती हूँ मांजी अकेली हैं घर में....
अरे रुक तो मेरे हाथ के बने गुलाबजामुन तो
खाकर जाओ तुम लोग......

चल अब तो जाने दे फिर मिलते हैं... रास्ते में
माँ बेटे बात करते हैं- अच्छा रहा तू आ गया...
भले ही दो दिन को आया पर मेरे मन की साध
तो पूरी हो गयी... आज के दिन मेरी बहू को
देख कर मन प्रसन्न हो गया...तू नहीं आता तो
मैं भी आज के दिन न जा पाती.....बातें करते 
करते घर आ गया आर्यन गाड़ी रखने लग गया... इतने में मम्मी के चीखने की आवाज सुनाई दी दौड़कर अंदर गया......
क्रमशः--

कहानीकार-रजनी कटारे
     जबलपुर ( म.प्र.)

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1 Comments

देविका रॉय

24-Jan-2022 06:19 PM

Very nice...

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